हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार, इज्तिमा में "खत्म-ए-नुबूवत" पर विशेष सत्र आयोजित किया गया, जिसमें उलेमाओं ने क़ुरान और हदीस के आधार पर इस्लाम में नबूवत के अंत की अहमियत पर चर्चा की। उलेमाओं ने यह स्पष्ट किया कि यह विश्वास इस्लाम का बुनियादी हिस्सा है, और इसमें किसी प्रकार के संदेह या बदलाव की गुंजाइश नहीं है।
मुफ्ती निज़ामुद्दीन मुसबाही ने क्रिप्टोकरेंसी पर शरई दृष्टिकोण बताया और कहा कि क्रिप्टोकरेंसी असल में मुद्रा नहीं है, इसलिए इसका कारोबार शरिया के तहत सही नहीं है, लेकिन अगर सरकार इसे कानूनी रूप से मान्यता देती है तो इसमें कारोबार किया जा सकता है।
मौलाना क़मरुलज़मां अज्मी ने इस्लाम के शाश्वत होने की बात की और उलेमाओं से अपील की कि वे आधुनिक सवालों का जवाब शरई सिद्धांतों के आधार पर दें। मौलाना मुहम्मद शाकर नोरी ने कहा कि केवल नमाज, रोज़ा और हज से हज़रत ﷺ से मुहब्बत पूरी नहीं होती, बल्कि हमें पूरी तरह से इस्लामी शिक्षाओं का पालन करना चाहिए।
यह इज्तिमा मुसलमानों को सही दिशा दिखाने और उनके ईमान को मजबूत करने का एक अहम अवसर था।